रामस्नेही गुरु मंत्र
राम नाम तारक मंत्र, सुमिरे शंकर शेष,रामचरण सांचा गुरु, देवे यो उपदेश ।सतगुरु बक्षे राम नाम, शिष्य धरे विश्वास,रामचरण निसदिन रटे, तो निश्चय होसी प्रकाश ।
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राम नाम तारक मंत्र, सुमिरे शंकर शेष,रामचरण सांचा गुरु, देवे यो उपदेश ।सतगुरु बक्षे राम नाम, शिष्य धरे विश्वास,रामचरण निसदिन रटे, तो निश्चय होसी प्रकाश ।
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स्वामी जी श्री रामचरण जी महाराज की अनुभव वाणी – गुरुदेव को अंग आप हो गुरुदेव दिनपति अगम ज्ञान प्रकाश है। उर नयन के तुम देव वायक अज्ञता तिम नाश है ॥ यथा निज पद पाइयो हम आप किरपा पूर हैं । नमो जी रिछपाल सतगुरु काल कंटक दूर हैं ॥ संग सतगुरु देव जी को महा भागी
अथ ग्रन्थ मन खण्डन लिख्यते स्तुति : रमतीत राम गुरू देवजी , पुनि तिहुँकाल के संत । जिनकूं रामचरण की, वंदन बार अनंत ॥१॥ दोहा : अलख निरंजन बीनऊं , लागूं सतगुरु पाँय । मन खण्डन की जुक्ति होइ, सो मोही दोऊ बताय ॥१॥ मन तन पर असवार है, गुण इन्द्री सब साथ । फिरे
राम रक्षा मन्त्र जो नर राम नाम लिव लावे,जाकू कोई भय नहीं व्यापे विघ्न विले होई जावे॥ अगल बगल का छांड पसारा, मन विश्वास उपावे ।सर्वज्ञ साईं एक ही जाने, जो निर्भय गुण गावे ।राहु केतु अरु प्रेत शनिश्चर, मंगल नाही दुखावे ।सूरज सोम गुरु अरु बुध ही, शुक्र निकट नहीं आवे ।भैरू बीर बिजासण डाकण,
नमो गुरुदेवं कृपा पूर किन्ही, नमो आप स्वामी अभै गति दिन्ही।नमो वीतरागा सुधानाम पागी, नमो योगध्यानी समाधिसूं लागी।नमो ब्रह्मरुपं अरुपं अलेखं, नमो आप पारम् उतारे अनेकम्।कहे *रामचरणं* नमोजी दयालम्, कृपापुर मोपे करी हे कृपालम्॥1॥कृपापुर मोपे कृपालम् करी हे, महाझीन होती दुराशा हरी है।कियो दिल्लपाकं विपाकं निवारे, दियो रामनामं सबे काम सारे।दिये ज्ञान भक्ती सूं निर्वेद
https://youtu.be/TzXBkZYlRp8?si=-KXaL4IKHw_m6Jpuअथ ग्रंथ गुरु महिमा लिख्यते * *स्तुति **रमतीत राम गुरुदेवजी,* *पूनि तिहूं काल के सन्त।* *जिनकूं रामचरण की,* *वन्दन बार अनन्त।।* * दोहा **शिश धरुं गुरु चरण तल,* *जिन दिया नाम तत्सार।**रामचरण अब रैन दिन,*
ramsnehi sampraday shahpura chartumas 2024 अंतरराष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय शाहपुरा के अंतर्गत 2024 में होने वाले चार्तुमास की लिस्ट उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है | अगर आप के जानकारी में रामद्वारा या संत श्री जिनका चार्तुमास इस लिस्ट में नहीं हो तो कृपया 9001069719 पर जानकारी व्हाट्सअप करे | इस लिस्ट में किसी
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दषम आचार्य श्री जगरामदास जी महाराज आपका जन्म ग्राम इंद्राली जि. बाडमेर राजस्थान के राजपूत परिवार में भादवा सुद 4 सं. 1907 में हुआ। गृहस्थाश्रम में आपका मन कभी नहीं लगा। आपको एकान्तवास अधिक पसन्द था। फाल्गुण बुद 7 वि.संवत 1934 में आपने बालोतरा के साध श्री विनतीदासजी महाराज से दीक्षा ग्रहण की। आप अधिकतर
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नवम आचार्य श्री दयाराम जी महाराज आपका जन्म बाघथला मेवाड के राजपूत परिवार में वि.सं. 1918 में हुआ था। बचपन से ही आपका मन सांसारिकता में नहीं लगा। आप प्रायः चिन्तन मुद्रा में रहते थे। फलस्वरूप 11 वर्ष की अवस्था में ही वि. संवत 1929 में आपने दीक्षा ग्रहण करली। महाराज श्री गंगादास जी षिष्य
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अष्टम आचार्य श्री धर्मदास जी महाराज आपका जन्म कार्तिक बुद 12 सं. 1906 में पलई ग्राम जिला टोंक के एक खण्डेलवाल मेहता परिवार में हुआ था। बचपन से ही आपकी वृति वैराग्य की ओर थी। सं. 1918 में, बारह वर्ष की अवस्था में ही आपने करौली के साध श्री राम गोविन्द जी से दीक्षा ग्रहण
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सप्तम् आचार्य श्री दिलषुद्धराम जी महाराज आपका जन्म सं. 1910 में ग्राम अभयपुर में एक राजपूत परिवार मेें हुआ था। संवत 1915 में केवल पांच वर्ष की अवस्था में ही आपने वैराग्य धारण कर लिया था। ग्राम बिसन्या के स्वामी रामदासजी म. के षिष्य साध श्री रतनदास जी के पास आपने दीक्षा ग्रहण की एवं
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षष्ठ्म आचार्य श्री हिम्मतराम जी महाराज आपका जन्म शेखावाटी के धानणी ग्राम में, आसोज बुद 14 सं. 1883 को मारू चारण जाति में हुआ था। आपने सं. 1907 में श्री वीतराग स्वामी जी के षिष्य साध श्री सुखरामदास मुनि जी से दीक्षा ग्रहण कर वैराग्य धारण किया। आप जब बालक थे तभी आपके पिताजी का
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पंचम आचार्य श्री हरिदास जी महाराज आपका जन्म सं. 1860 में ग्राम आगूंचा में दाहिमा ब्राहम्ण कुल में हुआ। बचपन में ही आप में वैराग्य भावना उत्पन्न हो गई। फलस्वरूप आप शाहपुरा आये। उस समय श्री दूल्हैरामजी महाराज गादीधर थे। आपने आचार्य श्री से दीक्षा देने हेतु प्रार्थना की। इस पर आचार्य श्री ने कहा
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चतुर्थ आचार्य श्री नारायणदास जी महाराज आपका जन्म सं. 1853 में भूंडेल ग्राम में एक राजपूत परिवार में हुआ। बचपन से ही आपका मन गृहस्थी में नहीं लगा। बल्कि आप ईष्वर भजन की ओर उन्मुख रहे। फलस्वरूप 1860 में केवल 7 वर्ष की अवस्था में वैराग्य धारण कर लिया। आप श्री भूधरदास जी महाराज के
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तृतीय आचार्य श्री चत्रदास जी महाराज आपका जन्म वि.सं. 1809 में ग्राम आलोरी जाति काछोला चारण में हुआ। आप वि.सं. 1821 में 12 वर्ष की अवस्था में महाराज श्री रामचरण जी के षिष्य बने। आप उच्च कोटि के भक्त थे एवं हर समय नाम स्मरण में लीन रहते थे। आपने अनुभव वाणी की रचना की
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