अथ ग्रंथ गुरु महिमा लिख्यते *
*स्तुति *
*रमतीत राम गुरुदेवजी,*
*पूनि तिहूं काल के सन्त।*
*जिनकूं रामचरण की,*
*वन्दन बार अनन्त।।*
* दोहा *
*शिश धरुं गुरु चरण तल,*
*जिन दिया नाम तत्सार।*
*रामचरण अब रैन दिन,*
*सुमरै बारम्बार ।।1।।*
*चौपाई *
प्रथम किजे गुरु की सेवा,
तासंग लहे निरंजन देवा।
गुरु किरपा बुद्धि निश्चल भई ,
तृष्णा ताप शकल बुझि गई।।1।।
मैं अज्ञान मति का अति हीन ,
सतगुरु शब्द भया परवीन।
सतगुरु दया भई भरपूर,
भर्म कर्म सांसो गयो दूर।।2।।
गुरु की पूजा तन मन कीजै ,
सतगुरु शब्द हृदय धरि लिजै।
सतगुरु सम दूजा नहीं कोई,
जासूं तन मन निर्मल होई।।3।।
सतगुरु बिन सिझ्या नहीं कोई,
तीन लोक फिरि देखो जोई।
नारद पाया गुरु उपदेश ,
चौरासी का मिट्या क्लेस ।।4।।
गुरुबिन ज्ञान कहो किन पाया,
बैन सेन कर गुरु समझाया ।
सतगुरु भक्ति मुक्ति का दाता,
गुरु बिन नुगरा दो जग जाता।।5।।
गुरमुख ज्ञान सदा सुख पावे,
नुगरा नर के सांच न आवे ।
नुगरा का कीजे ,नहीं संग,
ज्ञान ध्यान में पाड़े भंग ।।6।।
सतगुरु सांच शील पिछणाया,
काम क्रोध मद लोभ गुमाया।
गुरु कृपा संतोष ही आया ,
तृष्णा ताप मिट्या सुख पाया।।7।।
गुरु गोविंद शूं अधिका होई ,
यासून रिस करो मती कोई।
प्रथम गुरु सूं भाव बढ़ावे,
गुरु मिलिया गोविंद कूं पावे।।8।।
दत्त दिगंबर गुरु चौबीस ,
सबही का मत धारिया शीश।
अपनी अकल आप समझाया,
मती पूरण कूं गुरु ठहराया।।9।।
गुणवंता गुण कदे ना भूले,
कृत्यगनी दो जग में झूले।
सुगरा गुरु की सेन पहचाने,
नुगरा नर वायक नहीं माने।।10।।
सुखदेव व्यास गर्भ योगेश,
गुरु किया जिन जनक नरेश।
जनमत मोह जिती वन गयो,
तोभी गुरु बिन काज न भयो।।11॥
व्दादश वर्ष गर्भ तप कीन्हो,
माया सू मन रतिन दिन्हो ।
पिता व्यास जनमत की त्याग्यो,
नरपति गुरु सू सांसो भाग्यो।।12।।
त्याग वैराज्ञ मत्त को पूरो,
इन्द्रिय जीत काछ द्रढ सूरो।
एती लक्ष अरु गुरु सो द्रोही,
तो वांको दर्श करो मती कोई।।13।।
वांके दर्श बुद्धि सब नाशे,
ज्ञान हीन अज्ञान प्रकाशे।
वासंग गुरु की अवज्ञा आवे,
भक्ति हीन कोई नरका जावे।।14।।
गुरु भक्ता गुरु शिर पर राखे,
गुरु को शब्द कबहू नहीं नाखे।
वांको संग सदा ही की जे,
तन मन अर्प राम रस पीजे।।15।।
सतगुरु मिल्या मोक्ष पद पावे,
अनंत कोटि जन महिमा गावे।
भया निरोग जिना गुरु गाया,
रोग न गया वैद्य बिसराया।।16।।
सब सन्ता की साख सुनिजे,
गुरु सू कपट कदे नही कीजे।
गुरु को ब्रह्म रुप करी जानो,
ताकी भक्ति चढ़े परमानो।।17।।
गुरु किरपा नर की बुद्धि पाई,
पशु वृत्ति सब दूर गमाई।
आप नमे गुरु दीरघ देखे,
तासिख को कृत लागे लेखे।।18।।
जो नर गुरु का अवगुण धारे,
होय मनमुखी गुरु विसारे।
सो नर जन्म जन्म दुख पासी,
गुरु द्रोही जम द्वारे जासी।।19।।
गुरु मनुष्य बुद्धि जानो मती कोई,
सतगुरु ब्रह्म बुद्धि सम जोई।
सतगुरु सकल काल को काल,
सिखा निवाजन दिन दयाल।।20।।
*दोहा *
*सतगुरु कूं मस्तक धरे,*
*राम भजन सू प्रित ।*
*रामचरण वे प्राणीया,*
*गया जमारो जित।।2।।*
*सांचा सतगुरु सेईये,*
*तजिये कूड़ा मत्त।*
*रामचरण सांचा मिल्या,*
*दर्शेगा निज तत्त।।3।।*
*गुरु महिमा सिखे सुने,*
**हिरदय करे विचार।*
*रामचरण तत्त् सो धरे,*
*सोही उतरे पार।।4।।*
इति ग्रंथ गुरु महिमा सम्पूर्ण
*दोहा॥4॥, चौपाई॥20॥, सर्व॥॥24*
*ग्रंथ॥1॥*
रामजी राम राम महाराज